भारतीय ज्योतिष में सौरमंडर के नौ ग्रहों का प्रभाव सृष्टि पर पड़ता है, जिसमें से राहू और केतु छाया ग्रह हैं। छाया ग्रह से तात्पर्य गुरुत्वाकर्षण और ब्रह्मांडीय आकर्षण अर्थात उत्तोलन से है। विज्ञान बचे सात ग्रहों में से सिर्फ पांच को ही ग्रह मानता है। विज्ञान में सूर्य को तारा और चंद्रमा को धरती का उपग्रह माना गया है।
ज्योतिष में इन नौ ग्रहों की रेडियो एक्टीविटी के सृष्टि पर प्रभाव का अध्ययन होता है। सबसे कमाल की बात है कि ज्योतिष के इन नौ ग्रहों में से अकेले शनि का असर सृष्टि के 40 प्रतिशत से अधिक लोगों पर
वैज्ञानिक तथ्य
सूर्य से गिनती शुरू करने पर शनि छठा ग्रह है। वृहस्पति के बाद यह सौरमंडल में सबसे विशाल है, जो पृथ्वी से नौ गुना बड़ा है। यह सूर्य से सबसे ज्यादा दूरी यानी 88 करोड़, 61 लाख मील और पृथ्वी से 71 करोड़, 31 लाख, 43 हजार मील दूर स्थित है। शनि का व्यास 75 हजार 100 मील है। शनि छह मील प्रति सेकेंड की गति से 21.5 सालों में सूर्य की परिक्रमा पूरी करता है।
शनि पर सामान्य तापमान 240 फॉरेनहाइट है। इसके चारों और सात वलय हैं और बिना चांदनी के कई चंद्रमा हैं। शनि लोहा, निकल, सिलिकॉन और ऑक्सीजन से निर्मित है, जो ठोस हाइड्रोजन की एक मोटी परत से घिरा है।
धार्मिक मान्यता
धार्मिक मान्यता के अनुसार शनि सूर्य और छाया के पुत्र हैं। शनि वैचारिक रूप से अपने पिता के धुरविरोधी हैं। लेकिन उनके विरोध में घृणा नहीं बल्कि श्रद्धा है। वैमनस्य नहीं, अपितु प्रेम है। उनके भाई हैं यम, जो मृत्यु के स्वामी हैं। शनि की एक बहन हैं यमुना, जो पापनाशिनी हैं और दूसरी बहन है भद्रा, जो कालगणना यानी पंचांग के एक प्रमुख अंग में विष्टिकरण के रूप में शुमार हैं।
शनि के गुरु शिव हैं। बुध, राहु, शुक्र, भैरव व हनुमान उनके परम मित्र हैं और पिता सूर्य के साथ चंद्र, मंगल महाविरोधी और वृहस्पति सम हैं। शनि को सूर्य पुत्र, शनिश्चर, शनैश्चर, पिप्पलाश्रय, कृष्ण, कोणस्थ, बभ्रु, पिंगल, मंदगामी, रोद्रांतक, मंद, सौरि और छायापुत्र नामों से भी जाना जाता है।
पुष्य, अनुराधा और उत्तराभाद्रपद इन तीन नक्षत्रों के स्वामी शनि हैं। मकर व कुंभ राशि के भी यही मालिक हैं। शनि महाराज तुला राशि में 20 डिग्री पर शनि उच्च के हैं और मेष राशि में 20 अंश पर नीच के हैं।
शनि शांति के उपाय
शनि न्यायधीश हैं। लिहाजा नकारात्मक कार्यों पर काबू पाना शनि के कुप्रभाव से बचने की पहली शर्त है। नेत्रहीनों की सेवा, वृद्धों, दिव्यांगों व असहायों की मदद शनि के नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए बेहद मुफीद माना गया है। शनि का दान, शनिवार व्रत, महामृत्युंजय मंत्रों का फुसफुसा कर जप, हनुमान चालीसा व सुंदरकांड का सस्वर पाठ शनि जनित कष्टों से जूझने में आत्मिक बल प्रदान करता है।
तेल से बने खाद्य पदार्थ, खट्टे पदार्थ, तेल, गुड़, काला कपड़ा, तिल, उड़द, लोहे, चर्म और काले रंग की वस्तुएं शनि के दान के लिए उत्तम मानी जाती हैं। अध्यात्म, ज्योतिष, योग, राजनीति और कानून विषयों पर शनि का सीधा प्रभाव होता है। तृतीय, षष्ठ, नवम, दशम या एकादश भाव में शनि हो तो उपरोक्त क्षेत्र में अपार सफलता मिलती है।