मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को भगवान राम-सीता का विवाह संपन्न हुआ था। इसलिए इस तिथि को श्रीराम विवाहोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसे विवाह पंचमी भी कहते हैं। भगवान राम चेतना और माता सीता प्रकृति शक्ति के प्रतीक हैं। इसलिए चेतना और प्रकृति का मिलन होने से यह दिन काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। इस दिन भगवान राम और माता सीता का विवाह करवाना बहुत शुभ माना जाता है।
हालांकि कई जगहों पर इस तिथि को विवाह के लिए शुभ नहीं माना जाता है। मिथिलाचंल और नेपाल में इस दिन लोग कन्याओं का विवाह करने से बचते हैं। लोगों में ऐसी मान्यता है कि विवाह के बाद ही प्रभु श्रीराम और माता सीता दोनों को बड़े दुखों का सामना करना पड़ा था। इस वजह से लोग विवाह पंचमी के दिन विवाह करना उत्तम नहीं मानते हैं।
प्रभु श्रीराम और माता सीता का विवाह होने के बाद दोनों को 14 साल का वनवास भोगना पड़ा। वनवास काल के दौरान भी मुश्किलों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। लंकापति रावण पर विजय हासिल कर जब दोनों अयोध्या लौटे तब भी दोनों को एकसाथ रहने का सौभाग्य नहीं मिल पाया। शायद इसी वजह से लोग इस तिथि को विवाह की शुभ वेला नहीं मानते हैं।
हालांकि कुछ जगहों पर मान्यताएं अलग हैं। कहते हैं अगर विवाह होने में बाधा आ रही हो तो विवाह पंचमी पर ऐसी समस्या दूर हो जाती है। मनचाहे विवाह का वरदान भी मिलता है। वैवाहिक जीवन की समस्याओं का अंत भी हो जाता है। भगवान राम और माता सीता की संयुक्त रूप से उपासना करने से विवाह होने में आ रही बाधाओं का नाश होता है। बालकाण्ड में भगवान राम और सीता जी के विवाह प्रसंग का पाठ करना शुभ होता है। सम्पूर्ण रामचरित-मानस का पाठ करने से भी पारिवारिक जीवन सुखमय होता है।
सुबह के वक्त स्नान करें और श्रीराम विवाह का संकल्प लें। स्नान करके विवाह के कार्यक्रम का आरम्भ करें। भगवान राम और माता सीता की प्रतिकृति की स्थापना करें। भगवान राम को पीले और माता सीता को लाल वस्त्र अर्पित करें या तो इनके समक्ष बालकाण्ड में विवाह प्रसंग का पाठ करें या ॐ जानकीवल्लभाय नमः का जप करें। इसके बाद माता सीता और भगवान राम का गठबंधन करें। उनकी आरती करें। इसके बाद गांठ लगे वस्त्रों को अपने पास सुरक्षित रख लें।
श्रीराम विवाह के दिन पीले वस्त्र धारण करें। तुलसी या चन्दन की माला से मंत्र या दोहों का यथाशक्ति जप करें। जप करने के बाद शीघ्र विवाह या वैवाहिक जीवन की प्रार्थना करें। इनमे से किसी भी एक दोहे का जप करना लाभकारी होगा।
1- प्रमुदित मुनिन्ह भावँरीं फेरीं। नेगसहित सब रीति निवेरीं॥
राम सीय सिर सेंदुर देहीं। सोभा कहि न जाति बिधि केहीं॥
2- पानिग्रहन जब कीन्ह महेसा। हियँ हरषे तब सकल सुरेसा॥
बेदमन्त्र मुनिबर उच्चरहीं। जय जय जय संकर सुर करहीं॥
3- सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी॥
नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा॥