होली में अब कुछ ही दिन शेष बचे हैं। ब्रज में होली महोत्सव की शुरूआत हो चुकी है। ब्रज में होली पर्व की शुरूआत बसंत पंचमी के दिन से ही हो जाती है। बसंत पंचमी के दिन ब्रज के सभी मंदिरों और चौक-चौराहों पर होलिका दहन के स्थान पर होली का प्रतीक एक लकड़ी का टुकड़ा गाड़ दिया जाता है और 45 दिनों तक ब्रज के सभी मंदिरों में लगातार प्राचीन भजन गाए जाते हैं।
आपको बता दें कि ब्रज की रानी राधाजी के गांव बरसाने में होली से 8 दिन पहले फाल्गुन महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन
होली की शुरूआत हो चुकी हैं और ब्रज में स्वर गूंजने लगे हैं। ‘फाग खेलन बरसाने आए हैं, होरी खेलन आयो श्याम आज याहि रंग में बोरौ री’ इसका अर्थ है कि गोपियां हुरियारों से अपने नए फरिया और लहंगा पर रंग न डालने का जितना अनुरोध करती थी हुरिहार उतना ही उन पर न केवल रंग गुलाल डालते हैं बल्कि आनंद की अनुभूति करते हैं। ऐसे में गोपी लाठियों से प्रहार करती हैं और हुरिहार चमड़े की ढाल से अपना बचाव करते हैं। कुछ ही समय में रंगीली गली में लट्ठमार होलियों के समूह बनते जाते हैं जो बेहद ही खूबसूरत नजारा होता है।
इस वर्ष भी होली बरसाने और श्रीकृष्ण के गांव नंदगांव के लोगों के बीच में होगी। बरसाने और नंदगांव के बीच लट्ठमार होली की परंपरा सदियों से चली आ रही है। यह नजारा और कहीं देखने को नहीं मिलेगा। लट्ठमार होली केवल ब्रज में ही मनाई जाती है।